hindisamay head


अ+ अ-

कविता

मित्रता

श्रीप्रकाश शुक्ल


यह मित्रताओं के टूटने का समय है।

जब तिरस्कार, घृणा, दरिंदगी व गलाजत
एकदम से चुक चुकेंगी
तब कमरे में बिखरे अखबारों के बीच
गिरे किसी लिफाफे के वजूद की तरह
टूटेगी हमारी मित्रता!

जब संबंधों की बहुत गरमी के बीच
चुपचाप प्रवेश करेगी कोई ठंडक
तब शिशिर में पीले होते पत्तों की तरह
आखिरी क्षण के अटके आँसुओं में
टूटेगी हमारी मित्रता

हमारे चुपचाप चले जाने के बीच
जब होगी किसी के बुलाने की आहट
और इस आहट में होगी
पहुँचने की जल्दबाजी
तब टूटेगी हमारी मित्रता
हमारी थकान हमारी ऊबन हमारी घुटन के तमाम कुढ़ते क्षणों में
हमारी निरीहता के ठीक बीचोबीच|
जब उपस्थित होंगे कुछ सपने
(झिलमिलाते ही सही)

तब हमारी मित्रता के टूटने के दिन होंगे

ऐसी स्थिति में
उड़ान में छूट गए पक्षियों के कुछ पंखो की तरह
कब तक बचा पाएँगे हम
हमारी मित्रता।
   ('बोली बात' काव्य-संग्रह से)

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में श्रीप्रकाश शुक्ल की रचनाएँ