गंध कुछ और नहीं
रंगों को भीतर तक उतार देना है ।
रंगों से छनकर आती गंध
मुझे आखों से ज्यादे नथुनों को भर रही थी
जहां से मेरी धमनियो में रंग उतर आता है
जिसे दुनिया ने रंग की तरह पहचानने की कोशिश की
उसे मैने गंध की तरह महसूस किया है
और धरती पर पसरता जाता हूं
मुझे मालूम है कि आकाश के पास रंग ही रंग है
जो कि ठहरा हुआ है
गंध तो धरती के पास ही है
जिससे उसका डोलना संभव हुआ है ।