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कविता

इन पंक्तियों के बीच

एस. जोसफ

संपादन - मिनीप्रिया आर.


इन पंक्तियों के बीच
कभी मैं, कभी आप भी

मिट जाएँगे।

हम परिचित नहीं
शहर या चौपाटी पर
मिले होंगे।
पुल के खंभे को पकड़े
नीचे मछली पकड़ते आदमी को देखनेवाले
आप ही होंगे।
नहीं तो गोश्त या दवा लेने
जाते हुए देखा होगा।
हम जैसे कितने साधारण हैं, हैं न?
असाधारण कार्य करना चाहते हैं।
आप गाड़ी चलाते हैं।
नहीं तो ऋण लेकर दुकान शुरू करते हैं।
परीक्षा जीतते हैं, गाने गाते हैं।

मैं कविता लिखने का प्रयास करता हूँ।
हमारे प्रयास हम से लंबे रहेंगे।
लिखने के बीच में ही मैं मर मिटूँगा।
पढ़ने के बीच आप भी।

* एक तरह की मछली का नाम


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