पूवरश के नीचे एक लड़की
खड़ी है।
दूर पर
मोड़ के पार
गाड़ी के आने के लिए निहारती है
उस पार का हर कंपन
उसके
भौंहों पर
बरौनियों पर
गालों पर
दिखता है।
मैं भी गाड़ी की प्रतीक्षा में खड़ा हूँ।
मैं उसे ही देखता हूँ, मुझे
एक बुरा आदमी समझकर
वह खिंचती रहती है।|
पर देखता हूँ उसमें, न काला न गोरा
न अच्छा, न बुरा
न जाति, न विजाति
न देह न आत्मा
बस वह मोड़ व उसके पार से आती गाड़ी
पर यह, वह भी नहीं जानती।
* एक पेड़