तब नदी कुछ और होती है
जब चाँदनी चढ़े तो
उसपे जवानी उतर आती
कोई नाव उसमें उतर आए
हवाएँ उसके छोरों पे बिछ जाएँ
तो हँसती और हँसती जाती
और हमें गुदगुदा देती
वही नदी
जब किसी गाँव में उतर आए तो डर लगता है
कोई आदमी जो साहब होता
रिश्ते में कुछ लगता
वह हर कदम पर अच्छा लगता ही जाता
वही आदमी ऑफिस में दिखे
राहत कार्य पर उतरे
तो डर लगता है
पेड़ से हवा उतर आए
बरसात किसी चूल्हे पर चढ़ जाए
कोई इमारत किसी देह में उतर आए
तो डर लगता है
रात पर अँधेरा चढ़ जाए
तो सह लेते है लोग
कोई रात किसी आदमी पर उतर आए
तो डर लगता है
बड़ी होती बहन अच्छी लगती है
घर के दुखों से थककर
बढ़ा लेती है एक और व्रत
तो डर लगता है
कितना डर लगता होगा
जब धरती अपने पाँव से खिसक जाती
आकाश अपने रंग से जुदा होता
हिरण अपनी शोखी से
औरत अपनी सुंदरता से खौफजदा होती
कोई गुलाब यूँ ही सूखता जाए
मेरे मन पर कोई मन न आए
तो डर लगता ही जाता
फिर भी मुझे सबसे अधिक डर लगता
फिर से कहीं
किसी ईदगाह पर
कोई बच्चा चिमटा न खरीद ले।