hindisamay head


अ+ अ-

कविता

नेहरु नगर, आरा की परिणीता

शेषनाथ पांडेय


तुम्हें अच्छी लग गई होती मैं
जैसे तुम्हें जरूरतमंद भद्दे पेड़ व उनकी डालियाँ
अच्छी लग जाती हैं
तुमने पसंद कर लिया होता मुझे
जैसे तुम अँधेरों के समांतर सूरज को जानते हुए भी
कर्जखोर रोशनी वाला चाँद पसंद कर लेते हो
जैसे अनगढ़ दूब की मुलायमियत तुम्हें अच्छी लगती है
जैसे कफ पित्त बुखार ला देने वाले शीत तुम्हें अच्छे लगते हैं
जैसे आग की रोशनी अच्छी लग जाती है
वैसे मेरे साँवलेपन और अनगढ़ चेहरे के साथ
मैं भी तुम्हें अच्छी लग गई होती तो
मैं बिना किसी बालम के छूने से पहले मारी नहीं जाती
कैसे कैसे किसकी किसकी बात कहने वाले
मेरे कवि तुमने मुझे पसंद कर लिया होता
मैं तुम्हें कुछ देती या ना देती
तुम्हारा जायका जरूर बदल देती
जैसे क्यारियों के फलों से ज्यादा जायकेदार
तुम्हें लगता है गोबर पर फैला हुआ कुक्कुरमुता...।
बहरहाल मैं मार दी गई हूँ
इस दुनिया में एक और हत्यारा पैदा हो गया है
और दुनिया मेरी हत्या को भूलती जा रही है
मेरे मैं में सने मेरे तुम
अब तुम भी भूल रहे हो सबकुछ

और अंधाधुंध लिखते जा रहे हो कविता
मेरी पसंद नापसंद की
मेरे कवि मेरी हत्या का राज तुम्हारी पसंद से जुड़ा है
और दुनिया के किसी भी न्यायालय में इस तार का कोई मतलब नहीं
मैं तुम्हें कटघरे में खड़ा नहीं कर रही
लेकिन मेरे कवि तुमने मुझे पसंद कर लिया होता
मैं जिंदा रहती तुम्हारे साथ
अपनी साँसों को लेते हुए देखती तुम्हारा चलना
तुम्हारे होंठ, तुम्हारी आँखें
तुम्हारी जबान तुम्हारी कहकहे
तुम्हारे ककहरे
तुम्हारे सपनों के टूटते बाँध को बाँधते हुए
जिंदा रहती और अपने होने का मतलब बताती
अब वो मेरी हत्या में शामिल चार लोग क्या कहेंगे
जो हमें मारते हुए मेरे बचाव की ताकत से भागने के लिए बेचैन थे
अब क्या बताएगा लोहे का हँसिया मेरी ताकत का राज
जो मुझे मारने से पहले खुद टूट गया था...।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में शेषनाथ पांडेय की रचनाएँ