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कविता

मेरे राज

शेषनाथ पांडेय


दोस्तों, तुम बताओ
बेबाकी से न सही
चिलमन की आड़ से ही
मगर भोलेपन से बताओ
अपने दिल का राज
मैं चुप ही रहूँगा
तब भी
जब राज मेरी प्रेमिका के होठों और वक्षों का होगा
तुम्हें डर है
शराब की खुमारी में बक दूँगा तुम्हारा राज दिल्ली में
डरो मत, बहको और बताओ
उस दिन कहना
जब तुम्हें पता चलेगा
मैं मुंबई के खालिस नहाए कमरे में अकेले पी रहा हूँ
मेरे दोस्तों तुम्हारे राज के लिए पीना छोड़ दूँगा
बहो और बताओ अपने दिल का राज
मैं कुछ ना कहूँगा
तब भी जब राज खुलेगा तो मैं नंगा हो जाऊँगा

मेरे दिल ने अपने अंदर
इस सदी के तन्हाइयों से हासिल एक बड़ा मकान बनाया है
हर राज के लिए खुलूस भरा है इसके ईंट ईंट पर
झूमो और बताओ अपना राज
न जाने किस किस की नजर इनकार से
मेरा दिल हर्फ हर्फ कच-कच कट गया है
जिसकी पुरसकून महकी झाड़ियों में तुम्हारे राज
चैन की अनंत सदियों का मकाम पाएँगे
मेरे दोस्तों तुम्हारे राज के आने से
मेरे राज को साथी मिल जाएगा
मेरे राज को एक हुजूम दो।


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