इरोम शर्मिला मैं तुमसे कैसे कहूँ
कैसे बताऊँ कि
मैंने जिन जिन से किया है प्रेम
न जाने वे सब के सब
कहाँ, किस काल, किन्हीं दिशाओं, किन्हीं मुल्कों में बिला गए हैं
वे कौन-कौन है
किस मुल्क, किस काल किस दिशा से आए हुए लोग हैं
जो मेरे प्रेम के बिलाने पर कभी चुप रहते हैं
कभी कनखी मारते हैं
कभी अट्टहास करते हैं
कभी बंदूक की नाल मेरी तरफ कर देते हैं
मैंने जिन जिन से किया है प्रेम
उनमें से कुछ मर गए है प्रेम करते करते
मेरे साथ पढ़ने वाली लड़कियाँ कहाँ गई
उनमें से कुछ अपनी आँचल की आग बुझा बुझा कर जल गई हैं
कुछ आग बुझाते बुझाते कभी नैहर कभी ससुराल आ जा रही हैं
कुछ अपने पेट में प्रेम डाल भारी हो गई पत्थर की तरह
और डूब गई हैं उस जगह पर जिसे धरती कहते हैं
धरती पर कोई पत्थर कैसे डूब सकता है इरोम शर्मिला
जबकि इतने बड़े बड़े पहाड़ तन कर खड़े हैं ?
मेरे साथ पढ़ने वाले लड़के
अभी इतने शक्तिशाली नहीं हुए थे कि मार सके गेंद को
ग्राउंड के इस पार से उस पार तक
मगर वे निरमोछिया लड़के अपनी कच्ची शक्ति से विकास के उस लोहे वाली गेंद को
इस पार से उस पार तक मार दे रहे थे
यहाँ कोई कमजोरी, कोई कच्चापन नहीं चलने वाला था
उनकी मरने की खबरे कभी दिल्ली, कभी फरिदाबाद, कभी गुड़गाँव कभी मुंबई से आती रही
और मैं सोचता रहा कि तीस की उम्र में
फेफड़ा इतना कमजोर तो कभी नहीं हुआ मेरे गाँव के पूर्वजों का
मैं सोचता रहा कि सालों से दौड़ने खेलने में तेज लड़के
अब तक किसी आई पी एल या किसी खेल के हिस्सा क्यों नहीं हुए ?
2 .
मैंने जिन जिन से किया है प्रेम
उनमें से जो मरने से बच गए
वे झुक गए हैं
अपनी कमर से अपनी जमीर को लादे हुए
पशुपति बाबा को अब कौन करता है याद
जिसके लगाए हुए भागर किनारे के पेड़ों पर
सरहदों से बेखबर पक्षी आ कर बैठते हैं
किसान सुस्ताते है, अपनी बोझ पटक कर
गायें भैसे तफरी करती है नाद, खूँटे और पगहा से आजाद हो कर
अपने प्रिय का मुर्दा जलाते हुए लोग को
उन पेड़ों से कितना आराम मिलता होगा
जब उनका दिल और दिमाग दोनों झुलस रहा होता है
अब तो वहाँ आते है रामदेव बाबा
सब गाते है रामदेव गान
मनोज तिवारी और नामी गिरामी अली, बली, और बाहुबली के साथ फोटों खिंचवाते है
पगड़ी बाँधते है, माला पहनते, पहनाते है
यज्ञ, स्वर्ग, हवन, भोजन, भजन की बातें करते है
और भूल जाते हैं कि संस्कृति और प्रकृति का एक गहरा नाता हुआ करता है
भूल जाते हैं कि स्वर्ग और धरती की कोई यारी भी होती है
3 .
मैंने जिन जिन से किया है प्रेम
उनमें से जो झुकने से बचे हैं
वे टूट गए हैं
देह की पोर पोर से
अपनी आत्मा को बचाते हुए
नहीं तो नरेंद्र ओझा भी हो सकते थे बक्सर के लोकसभा साँसद
राज्य सभा के मदों से बनाए हुए रोड पर
लोग चलते रहे अपनी ठोकरों से अनजान
उनकी पहुँचाई बिजली से लोग
अपनी पत्नियों का चेहरा रात में भी देखते रहे
लेकिन जब उन्हें साँसद बनाने की बात आई
सवर्णों ने किनारा कर लिया कि वे कम्यूनिस्ट है
और बाकियों ने दूरी बना ली कि वे ओझा हैं तो ब्राह्मण हैं
इरोम शर्मिला मैं तुमसे क्या कहूँ
अभी तो पढ़ना शुरू ही किया था स्वदेश दीपक को और वे गायब हो गए
प्रेम की शुरुआत में ऐसे कोई गायब होता है कहीं ?
इरोम मैं तुम्हें कैसे बताऊँ कि
बाबरी से पहले यहाँ नालंदा हुआ करता था
संघ से पहले बुद्ध हुआ करता था
बुद्ध क्यों नहीं है यहाँ शर्मिला
हम कैसे सोचने लगे हैं आजकल कि नालंदा बन जाए तो पर्यटन में बढ़ावा मिलेगा
क्या नालंदा का महत्व पर्यटन तक सिमटा हुआ था ?
4 .
अभी तो खुशफहमियाँ पालना शुरू किया था कि मैं इस बहुत बड़े देश का नागरिक हूँ
तभी भुअरा का डेड बॉडी आता है आसाम से
तभी पता चलता है कि पूर्व की नदियों में इस देश के लोगों का खून बहता है
तभी पता चलता है कि राहुल राज, धर्मराज मार दिया जाता है मुंबई में
तभी पता चलता है कि दक्षिण की तरफ हँसते हुए जाने वाली रेल
रोते हुए लौटती है
और तभी सवाल उभरता है कि कोई क्यों जाता है कहीं अपना घर बार छोड़ के
और तभी बात उठती है कि मेरे राज्य में क्यों हुए इतने नरसंहार
मैंने प्रेम किया उन जंगलों से जो हमें हमारी साँसें देते हैं
मैंने प्रेम किया उन लोगों से जो हमारी साँसों को सँभालते हैं
मैंने प्रेम किया उन लड़कों से
जो फौज में भर्ती होने के लिए तीन डंडिया तारो का उतर जाने का इंतजार करते रहे
ताकि भूतों और चुड़ैलों की बेला खत्म हो और दौड़ सकें
वे अभी इतने बहादुर नहीं हुए थे कि भूतों से डर न सके
हनुमान चालीसा के सहारे दौड़ते रहे
और अपनी कंधे पर बंदूक टाँगे निकल गए सरहदों पर
वे इतने समझदार नहीं थे कि लोक के साथ तंत्र की जादूगरी को समझ सके
वे बूथ पर गए और मारे गए
फिर जंगल और जमीन की लड़ाई में उलझ गए
और लड़ते रहे उनसे जो हमारे साँसों को सँभाल रहे थे
वे उद्योगपति जिंदा रहे, उनकी सत्ताएँ चलती रहीं
लेकिन वे लड़के और हमारी साँसों को सँभालने वाले आदिवासी मरते रहे
गलती किस की है, यह कोई और कहेगा जो तंत्र और तंत्रों का खेल समझता है
गलती किस की है, यह कोई और कहेगा जो सत्ता और नेता का खेल समझता है
मैं तो अपनी प्रेम की बात कर रहा था इरोम शर्मिला
कि मेरा प्रेम अभिशाप होता जा रहा है
कि मैंने जिन जिन से प्रेम किया वे खत्म होते रहे
और जिनसे नफरत किया वे आज अट्टहास कर रहे हैं
टी.वी. में दिखाए गए रावण और कंस की तरह
5 .
अब मैं कैसे किसी से कर सकता हूँ प्रेम
कैसे मैं मरते, खोते, झुकते, टूटते अपने प्रेमियों को देखते हुए
तुम्हारे साथ चल सकता हूँ मेरी इरोम
मुझे बहुत खटकती है बारह सालों से फँसी तुम्हारी नाक की नली
एक चाह उमड़ती है कि आऊँ और अपनी साँसों को सँभालते हुए
इतना आहिस्ते से उस नली को निकाल दूँ
जितना आहिस्ते से बचपन में माँ के कहने पर
सूई में धागा पिरोया करता था।
मुझे गुस्सा आता है तुम्हारे प्रेमी से ज्यादा तुम पर
कि तुम उससे सब कुछ सहवा रही हो
एक प्रेमी के साथ ऐसी क्रूरता ठीक नहीं इरोम
अपनी प्रेमिका को खुश देखने की चाहत तुम क्या जानो क्रूर इरोम
वो तो प्रेमी है उसके लिए तो तुम्हीं हो सबकुछ
उसकी मूक ख्वाहिशों को तुमने कहाँ दफना दिया है
और चिपका दिया है तनाशाहों से लड़ाई जीतने की ललक
मैं बेचैन रहता हूँ कि
तुम्हारे बिखरे बाल को कब कंघी कर सकूँ
जो न जाने किस नमी से गीले हो कर अलग अलग बिखरे हुए हैं
इरोम मैं तुम्हारे बालों को सँवार कर लाल पाढ़ वाली साड़ी पहनाना चाहता हूँ
उस पर मणिपुरी टोपी लगाना चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ इंदिरा गोस्वामी की बिंदी के पत्ते से एक बिंदी निकाल कर तुम्हारे माथे पर सजा दूँ
मेरी इरोम
इससे पहले कि इस मुल्क के अनाज पर किसी पूँजीपति का कब्जा हो जाए
और मैं बेदखल हो जाऊँ
मैं तुम्हें भरपेट खाना खिलाना चाहता हूँ
मैं बहुत पतली रोटियाँ और जायकेदार सब्जी बनाता हूँ
यकीन न आए तो मेरे दोस्तों से पूछ लेना
मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, मेरे हाथ का खाना तुम्हें बहुत भाएगा
मैं मुहब्बत के साथ कह सकता हूँ इरोम
मैं तुमको किसी दिन खिलाने की चाह लिए अपनी रसोई में रंग भरता रहता हूँ
क्या तुम मेरा अनुरोध स्वीकार करोगी इरोम|
या तुम भी इस मुल्क के राजाओं द्वारा अपने अनुरोधों को हर रोज ठुकराए जाने से
वैसी आदी हो गई हो कि मेरा अनुरोध तुम्हें बहुत अदना
बहुत बेवकूफाना सा लगने लगा है
6 .
मैं कुछ नहीं जानता इरोम
इस मुल्क की डूबती हुी भाषा का एक अदना सा कवि हूँ
मेरा विलाप, मेरी जिद, मेरी कमजोरी
जो भी, जैसा भी तुम समझती हो
लेकिन तुम्हें छोड़ना होगा सब
मुझसे नहीं देखी जाती सालों से पड़ी तुम्हारे नाक में नली
और इस मुल्क के राजा की चमकती हुई नाक को
मुझसे नहीं देखा जाता
तुम्हारे चेहरों पर पड़ी झुर्रियाँ
और उससे टपकते इस मुल्क के आँसू को
मुझसे नहीं देख जाता हिम्मत जुटा कर लाई हुई तुम्हारे चेहरे की हँसी
और उससे सिसता हुआ संघर्ष
खत्म हो जाने दो सबकुछ
होने दो बूटों, बंदूकों, लाठियों तलवारों तले बलात्कार
सायरन और सलामी के बीच चलने दो हिफाजत का खेल
इस मुल्क को बचाने से अब कोई नहीं रोक सकता
सब मान कर बैठे हैं तुम दिल्ली से दूर हो
सब मान कर बैठे हैं दिल्ली ही उद्धार कर सकती है
सब मान कर बैठे हैं जंगल और पेड़ आदिवासियों के काम ही आते हैं
सब मान कर बैठे हैं कि लोकतंत्र बचाने की जिम्मेदारी
गाँव और गरीबी से निकले उन लड़कों पर हैं जो सिपाही हैं
और उनसे चुनाव संभव हो पाता है
तुम्हें छोड़ना होगा इरोम शर्मिला
मेरे लिए,
इस मुल्क की डूबती हुी भाषा के इस अदना
कवि के लिए
जिसका प्रेम अभिशाप होता जा रहा है
और तुमसे सिर्फ इसलिए प्रेम नहीं कर पा रहा है कि
तुमसे करेगा प्रेम तो तुम भी खत्म हो जाओगी
मैं तुम्हें बचाकर अपना अभिशाप मिटाना चाहता हूँ इरोम शर्मिला
न... ना... ना... मैं स्वार्थी नहीं हूँ इरोम शर्मिला
तुम्हारी ताकत के एक एक नब्ज से वाकिफ हूँ
मैं तुम्हारा बहुत आदर करता हूँ
मैं तुम्हें बहुत प्यार करना चाहता हूँ
मैं हर अभिशाप झेल सकता हूँ
लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा है कि मैं प्रेम न करने के अभिशाप के साथ जिऊँ
इसलिए तुम अगर नहीं छोड़ सकती अपनी लड़ाई
माफ करना, मैं तुमसे प्रेम नहीं कर सकता
मैं तुम्हें खत्म होते हुए नहीं देख सकता।