रेपोर्ट पेश की गई थी।
	एक दूसरे को दोषी ठहराया जा रहा था,
	रंगों की दौड़ चक्के पर सवार थी
	दौड़ तो गुंबद के नीचे भी थी -
	आरोप-प्रत्यारोपों की।
	कोई उस रात की घटना को 'राजनीति से प्रेरित' करार कर उसे खारिज कर रहा था
	तो कोई 'नाकामियाँ छिपाने' की कोशिश कह रहा था,
	घमासान मचा हुआ था।
	कारणों की पड़ताल कम, स्वयं को साबित करने का मजमा लगा था।
	उसी गुंबद के बाहर स्थित मैदान की टूटी बेंच पर बैठी पगली सूखी आँखों मजमें को निहार रही थी
	वह उस महान सत्य का शिकार लग रही थी
	शायद कुतुबशेर इलाके के विवादित स्थल पर निर्माण कार्य के सत्य का।