hindisamay head


अ+ अ-

कविता

पहरेदार

सुमित पी.वी.


सदैव खूँखार नजरों से
देखता है
उसे शक रहता है और
जायज है रहना भी चाहिए

उसे सतर्क रहना पड़ता है
मजबूरी है, रहना ही पड़ता है
कहीं अपने इलाके में कोई
अजनबी न घुसे!
मगर कुछ ऐसे भी पहरेदार
मिले इस बीच हमारे इलाके में
जो अपने इस बोझिल पहरे का काम
मजे में कर रहे हैं।

वे निढाल होकर सोते नहीं है
अपनी ड्यूटी के वक्त
बस इंतजार में रहते हैं
हर एक आदमी का
जो उस रास्ते पर
आया-जाया करता है।

कोई दूर से नजर आते ही
हालचाल पूछता है
राम-राम साहब
का हाल है?

इसी को पहरेदार कहेंगे हम
जो लोगों के दिलों का
सचमुच पहरा करता है।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में सुमित पी.वी. की रचनाएँ



अनुवाद