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कविता

फीनिक्स पंछी

सुमित पी.वी.


वो देखो
आज भी जानकी
घर से बाहर कर दी गई है!
वह उसका पति है कि
कसाई है?
लोगों का इस तरह बोलना
हम बच्चे
उस समय समझते नहीं थे।
एक नहीं कई बार
हमने देखा, सुना कि
जानकी घर से बाहर है!
यह क्यों है?
जानकी घर से बाहर क्यों होती है?
माँ से पूछा तो
चुप रे!
ये सब बड़ों की बात है
तुम लोग जाकर
अपना काम देखो।'
रो-रोकर बेचारी
रात भर इंतजार करती
दरवाजे के बाहर
अपने बच्चों के साथ
कहीं खुल जाए
परमेश्वर का मन और
किवाड़!

कहाँ खुलता है!!!
ठंड में, बारिश में, गर्मी में
उसे बाहर ही रहना पड़ता था

हर बार बच्चा पैदा करने
के बाद वह कहता था
यह बच्चा मेरा नहीं
तुम जानो।
चल निकल बाहर, भाग यहाँ से
चारों बार यही हुआ था

इस बात की नींव मुझे
पता चल गई थी
हाल ही में
लेकिन तब तक जानकी
हमेशा के लिए घर से बाहर
कर दी गई थी

जानकी पर मुझे गर्व
महसूस हो रहा है
कई बार इज्जत खोने पर
स्वायत्त ऊर्जा से

उसने कसाई से हमेशा के लिए
विदाई ली।

इसी महीने के बीच
जब मैंने उसे देखा तो
उसका अपना घर है, बाल-बच्चे हैं
इन सबके अलावा
सुख है, शांति है
जिंदगी का हरापन है!!


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