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कविता

मैं और माँ

सुमित पी.वी.


पहली बार जब माँ ने कहा
राजू मेरी याददाश्त कमजोर
होती जा रही है
बोल रही थीं
जगहों के नाम, आदमी का नाम
यहाँ तक की सब्जी में नमक डालना
सब कुछ भूल रही हूँ। क्या करूँ मैं?
तब मैंने उनसे कहा था
अरे माँ, यह तो सभी को होता है
परेशान मत हो तुम।
लेकिन माँ सचमुच परेशान थीं
अपनी याददाश्त को लेकर।
जब छुट्टियों में मैं घर आया तो
हमेशा की तरह माँ
कामों में व्यस्त थीं
तब मुझे कुछ विशेष न लगा।
हर बार की तरह
दस दिन की छुट्टी के बाद
लौटते समय
पापा के साथ माँ भी आई थीं
स्टेशन
गाड़ी छूट रही थी
मैं खड़ा था गाड़ी के
फाटक पर, मगर
पापा के साथ खड़ी माँ
की निगाहें दूर
चाय बेचने वाले लड़के पर थीं !!!


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