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कविता

दादा की कुरसी

सुमित पी.वी.


दादाजी की मौत तब हुई थी
जब मैं ग्यारह साल का था
उसके बाद जब भी उनके कमरे
में जाता हूँ तो
मैं बेचैन हो उठता हूँ
उनकी कुरसी कुछ विशेष थी
खुद उनके लिए भी और हम
बच्चों के लिए भी।
ऊपर-नीचे लकड़ी की छड़ी
लगाकर बीच में मजबूत कपड़े से
बनाई गई थी वह कुरसी।
जब दादा बाहर जाते थे
हम बदमाश बच्चे लकड़ी की छड़ी
निकालकर कपड़े को उसी तरह
लगा रखते थे।
दादा आकर बैठ जाते थे
तो हम हँस कर कूद जाते थे।
इस वक्त कुरसी का कपड़ा खराब हो चुका है
बदमाश बच्चे बड़े हो चुके हैं
फिर भी कुरसी है, हम हैं... दादा की कमी है!


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