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कविता

दृष्टि

सुमित पी.वी.


समुंदर की गहराई को
और आकाश के विस्तार को
कोई नाप नहीं सकता।

लेकिन मैं पूछता हूँ
मेरी दृष्टि को तुम
नाप या रोक पाओगे?


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