समुंदर की गहराई को और आकाश के विस्तार को कोई नाप नहीं सकता। लेकिन मैं पूछता हूँ मेरी दृष्टि को तुम नाप या रोक पाओगे?
हिंदी समय में सुमित पी.वी. की रचनाएँ
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