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कविता

आदमी का हाथ

सुमित पी.वी.


आदमी का बढ़ता हुआ
हाथ मुझमें सदैव
घबड़ाहट पैदा करती है

दरअसल मुझे शक रहता है
कहीं उसका हाथ मुझे
गिरा देने की साजिश तो नहीं?

इसीलिए किसी से हाथ मिलाते
समय मैं अपना एक हाथ नहीं देता
दोनों हाथ से उसके हाथ को
थाम लेता हूँ।

यह मेरी साजिश नहीं
अपने को सुरक्षित रखने की
एक कोशिश जरूर है।
आदमी से, उसकी गंदी साजिशों से
मेरा डर इस प्रकार है।


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