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कविता

इशारा
अभिज्ञात


मैं आ तो गया हूँ यहाँ
पर किसका...
किसका इशारा था
इस शहर, इस मोहल्ले, इस किराए के मकान में आने का

क्या राशिफल ने निकाला था कोई निष्कर्ष
कहा था मेरे अवचेतन मन ने मरे सपनों को
हवा ने कहा था - 'बहो इस ओर।'
या फिर किसी ने की थी कामना
कि मैं
चला जाऊँ
वहाँ, उस ओर
जहाँ अपनों को करूँ दूर से रह-रह कर याद

मैं उस इशारे को तह से पकड़ना चाहता हूँ
जो किसी के आने-जाने को करता है नियंत्रित
पर इसके लिए मुझे कहाँ जाना होगा
यह भी तो असमंजस है
इसे भी तय करेगा
कोई कहाँ से बैठ चुपचाप।


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हिंदी समय में अभिज्ञात की रचनाएँ