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कविता

संस्कृति

लाल सिंह दिल


तू क्या है
क्यों चेहरा छुपाया है?
पर्दे में चलती है क्यों?
क्यों नाखून भी छुपाए हैं?
आखिर तू है कौन?
उस आदमी को कहीं देखो
जो दिन-रात भारी रथ खींचता है
उसके कानों में सदियों से ढला सिक्का है
उसके शरीर पर उन चाबुकों के निशान हैं
जिन्हें लगाते रहे रजवाड़े, कहीं के भी
वह जरूर पहचानता होगा
वह रातों में कभी-कभी
आसमान जितनी आहें भरता है
तारे मुरझा से जाते हैं
वह कहता है :
''धरती मेरी पहली मुहब्बत है''
वह जिक्र करता है
''ये तारे आकाश में,
मैंने जड़े हैं।''
वह ईसा के देशों में घूमा है
वह गौतम के मुल्कों में चला है
उसके कानों में सदियों से ढला सिक्का है।


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