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कविता

बाबुल तेरे खेतों में

लाल सिंह दिल


बाबुल तेरे खेतों में
कभी-कभी मैं नाच उठती हूँ
हवा के झोंके की तरह
यूँ ही भूल जाती हूँ
कि खेत तो हमारे नहीं रहे
कुछ दिन का टिकने का बहाना
मुकद्दमे हार बैठे हैं
पैसे की कमी से
स्लीपर टूट चुके हैं
भरवड़ा उग आया है
बाबुल तेरे खेतों में
ट्रैक्टर दौड़ेंगे किसी दिन
बाबुल तेरे खेतों में।


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