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कविता

छोड़ चले हैं

लाल सिंह दिल


एक और गैरों की जमीन
छाजों वाले
जा रही है लंबी पाँत
झिड़कियों के भंडार लिए
लंबे सायों के साथ-साथ
गधों पर बैठे हैं बच्चे
बापों के हाथों में कुत्ते हैं
माँओं की पीठ पीछे
बँधे पतीले हैं
पतीलों में माँओं के पुत्र सोए हैं
जा रही है लंबी पाँत
कंधों पर उठाए झुग्गियों के बाँस
ये भूखों के मारे कौन आर्य हैं?
ये जा रहे हैं रोकने
किस भारत की जमीन।
नौजवानों को कुत्ते प्यारे हैं

वे कहाँ पालें
महलों के चेहरों का प्यार?
वे भूखों के शिकार छोड़ चले हैं
एक ओर गैरों की जमीन
जा रही है लंबी पाँत

इनको क्या पता है?
कितने बँधे खूँटों के साथ
जलाए जाते हैं रोज लोग
जो छोड़ भी सकते नहीं
बस्तियों को किसी रोज
जा रहा है साथ-साथ
बस्ती के पेड़ों का साया
पकड़ रहा है घर की याद में डूबे पशुओं के पैर
यादों में डूबे प्यारों के पैर
जा रही है लंबी पाँत

जा रही है लंबी पाँत
हर जगह
जा रहे हैं वीर धरती के किसान
कंधों पर बरछों का भार लिए
जंगली राहों के साथ
कत्ल हुए कल खेतों के प्यार
झुग्गियों से उठी कल आग की लपटें
जा रही है लंबी पाँत।


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