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कविता

देश

लाल सिंह दिल


एक मेरे वतन की दूसरी शक्ल है
एक मेरी कौम कोई और भी है
जहाँ कहीं एक भी मुहल्ला
अध-भूखा
अध-सोया
सो रहा है
कहीं भी जहाँ मेहनतकश
दुख रहे अंगों का दिल बहलाने के लिए
तारे गिनें

मेरे देश से दूर
जहाँ कहीं भी वह मेरा वतन है
कहीं भी बसती वह मेरी कौम है।
जब भी कभी मैं इस अपने वतन का
कोई गीत गाने के लिए छेड़ता हूँ सितार
सागरों के पार से चले आते स्वाँग
कौन है जो इनका स्वागत करे?
कौन है जो इन सरहदों के साथ
हर साल खून के दरिया बहाता है?
एक मेरे वतन की दूसरी शक्ल है
एक मेरी कौम कोई और भी है।


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