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लेख

झंडा सत्याग्रह : आजादी के आंदोलन का अद्वितीय अध्याय

शिव कुमार मिश्र


झंडा सत्याग्रह आजादी के आंदोलन का अद्वितीय और सर्वोत्तम अध्याय है। इस सत्याग्रह के उन्नायक थे, कर्मवीर पंडित सुंदरलाल। झंडा सत्याग्रह के समय का सर्वप्रिय गीत था : 'झंडा फहराया भारत में धन्यतपस्वी सुंदर लाल। सन 1922 में कांग्रेस महासमिति ने अपनी लखनऊ की बैठक में एक सत्याग्रह कमेटी मनोनीत की थी जिसमें पंडित मोतीलाल नेहरू, डाक्टर अंसारी, श्री विट्‍ठल भाई पटेल, श्री एस. कस्तूरी रंगा आयंगर और चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य को सदस्य मनोनीत किया गया और हकीम अजमल खाँ को समिति का अध्यक्ष बनाया गया। गोरेशाही सरकार के जोर जुल्म का मुकाबला करने के लिए किस रूप में सत्याग्रह अपनाया जाए, इस संबंध में देश का दौरा कर के अपनी रिपोर्ट पेश करना कमेटी के सुपुर्द हुआ।

सत्याग्रह कमेटी ने देशव्यापी दौरा किया, सब जगह उसका जोरदार स्वागत हुआ। समिति दौरा करते हुए जबलपुर आई। जबलपुर में म्युनिस्पिल चुनाव में कांग्रेस ने जबर्दस्त जीत हासिल की थी। नगर पालिका के अध्यक्ष श्री कनछेदी लाल के प्रस्ताव पर शिष्ट-मंडल के सदस्यों को मानपत्र देने का निर्णय लिया और इस अवसर पर टाऊन हाल की इमारत पर राष्ट्रीय झंडा फहराया जाय। सीमिति के अध्यक्ष हकीम अजमल खाँ के कर कमलों से झंडा फहराया गया। घटना फरवरी 1923 की है।

तिरंगे झंडे को लेकर 'हाऊस ऑफ कामन्स' में कंजरवेटिव सदस्यों ने सरकार की तीव्र भर्त्सना की कि एक नीम सरकारी इमारत पर विद्रोह का झंडा फहराने की अंग्रेज डिप्टी कमिश्‍नर ने कैसे अनुमति दी? आलोचना का उत्तर देते हुए अंडर सेक्रेटरी-ऑफ-स्टेट फॉर इंडिया, अर्ल विंटरटन ने कहा, 'सरकार को खेद है कि अनजाने में इस विद्रोही झंडे को टाऊन हाल में फहराने दिया गया। भविष्य के लिए भारत सरकार को हिदायत दी गई है कि वह इस की पुनरावृति न होने दें।' इस आश्‍वासन के फलस्वरूप भारत सरकार के होम डिर्पाटमेंट ने एक गुप्‍त सर्कुलर जारी किया जिसके अनुसार सभी राज्यों को आदेश दिया गया कि, किसी भी सूरत में बगावत के सूचक इस राष्ट्रीय झंडे को म्युनिसिपल इमारतों पर न फहराने दिया जाए।

पाँच बजे नेताओं के नागरिक अभिनंदन का समय मुर्करर था। चार बजे सूचना मिली कि टाउन हाल में डिप्टी कमिश्‍नर ने ताला लगा दिया है और नगर पालिका को यह आदेश दिया कि अभिनंदन का कार्यक्रम डिप्टी कमिश्‍नर अपने विशेषाधिकार से रद्‍द करते हैं। सत्याग्रह कमेटी जिस संभावना को खोजने के लिए देशव्यापी दौरा कर रही थी, उस का अवसर मध्य प्रदेश की सरकार ने दे दिया।

कांग्रेस मे शाम को 5 बजे विशाल सार्वजनिक सभा में नेताओं के भाषण हुए। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष पंडित सुंदरलाल ने इस अवसर पर घोषणा की, 'हमें राष्ट्रीय झंडे की मान रक्षा के लिए सत्याग्रह प्रारंभ करना है। इसके लिए हमें पाँच हजार सत्याग्रही स्वयं सेवक चाहिए। पाँच हजार ऐसे ग्रहस्थ चाहिए जो प्रतिदिन चरखा चलाते हो और पच्चीस हजार कांग्रेस के नए सदस्य भरती करने चाहिए।' कार्यक्रम की घोषणा करने के साथ-साथ पंडित सुंदरलाल ने यह भी घोषणा की कि जब तक यह काम पूरा नहीं होगा तब तक मैं अनाज और अनाज से बनी चीजें, फल और फल से बनी चीजें, दूध और दूध से बनी चीजें, सब्जी और सब्जी से बनी चीजें नहीं खाऊँगा। केवल कंद और मूल पर ही निर्वाह करूँगा।

पंडित जी ने इस संदर्भ में लिखा कि सरगरमी के साथ मेरी इन शर्तों को पूरा करने में कांग्रेस के सैकड़ों कार्यकर्ता लग गए।

गांधी जी के कारावास का एक वर्ष 18 मार्च 1923 को पूरा हो रहा था। जबलपुर शहर कांग्रेस कमेटी ने जुलूस और सभा का ऐलान किया। तब यह भी ऐलान हुआ कि जुलूस गोमती पुल से होकर सदर बाजार की ओर जाएगा। कार्यक्रमानुसार पंडित सुंदरलाल की अगुवाई में जुलूस शुरू हुआ। पुलिस सुपरिंटेडेंट श्री बंवाव्ले एवं डिस्टिक्ट मजिस्ट्रेट भी उपस्थित थे। प्रशासन ने जुलूस की रोकथाम के लिए बल प्रयोग भी शुरू किया।

पंडित सुंदरलाल ने जुलूस को संबोधित करते हुए कहा कि, 'आज गांधी जी के कारावास की इस जयंती के अवसर पर हमें सत्याग्रह करने का मुँह माँगा वरदान मिला, लेकिन हमें अनुशासन के साथ सत्याग्रह प्रारंभ करना है। सत्याग्रह का यह नियम है कि सत्याग्रह प्रारंभ होने पर नेता ही अपने को पेश करता है। इसलिए दस व्यक्‍तियों की टोली का नेतृत्व किया।

सुप्रसिद्ध हिंदी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की बेटी सुधा चौहान ने इस संबंध में रोचक टिप्पणी की है। सुधा जी ने लिखा कि राष्ट्रीय झंडे का अपमान देश का अपमान था और इसका प्रतिकार तत्काल होना चाहिए था। पं. सुंदरलाल, जो कि इस आंदोलन के नेता थे उन्होंने लक्ष्मण सिंह (सुधा के पिता और सुभद्रा कुमारी चौहान के पति और प्रदेश कांग्रेस के महासचिव) से कहा कि फौरन सुभद्रा को बुला लाओ। सुभद्रा घटना स्थल पर पहुँच गई। पंडित सुंदरलाल ने दस आदमियों की एक सत्याग्रह कमेटी बनाई जो तिरंगा लेकर कैंटोनमेंट की तरफ बढी। सुभद्रा जी इन दस आदमियों में एक थीं। कैंटोनमेंट में घुसने के पहले ही पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। सारे सत्याग्रही रात भर पुलिस हिरासत में रहने के बाद छोड़ दिए गए। केवल पंडित सुंदरलाल पर मुकदमा और छह महीने की सजा हुई।

अठारह साल की सुभद्रा सत्याग्रही होकर पुलिस की हिरासत में रह आईं। सत्य के लिए, अपने आदर्श के लिए कितना भी बड़ा त्याग या खतरा उठा सकने की उनमें हिम्मत थी। वे इसलिए लिख भी सकीं।

पंद्रह कोटि असहयोगिनियाँ

दहला दें ब्रह्मांड सखी

भारत लक्ष्मी लौटाने को

रच दें लंका कांड सखी

उस समय तक 'विजयी विश्‍व तिरंगा प्यारा' की रचना नहीं हुई थी। उस समय के प्रचलित गीत 'नहीं नवेगा, नहीं नवेगा, कौमी झंडा कभी नहीं!/ भारत माँ की विजय पताका, झुक सकती क्या कभी कहीं?/ वीर शेष तैंतीस कोटि पर कौमी झंडा खड़ा हुआ,/ इसकी रक्षा हेतु वतन का बच्चा-बच्चा अड़ा हुआ! नहीं नवेगा, नहीं नवेगा, कौमी झंडा कभी नहीं !'

साढे तीन सौ सत्याग्रही जबलपुर के टाऊन हाल के सत्याग्रह में शामिल हुए और उन्हें छह-छह महीने की सजा दी गई। हिंदी मध्यप्रदेश से लगभग बारह सौ सत्याग्रहियों ने नागपुर सत्याग्रह में भाग लिया। नागपुर में जिस समय श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान गिरफ्तार हुईं उस समय चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य वहाँ उपस्थित थे। उन ने बाद में यंग इंडिया में इस की चर्चा करते हुए लिखा : 'This Frail Sister of tender years have shown the way to us all.'

कांग्रेस कार्य समिति ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को सत्याग्रह का निदेशक बना कर नागपुर भेजा। पंद्रह अगस्त 1923 तक लगभग 17 सौ सत्याग्रही जेल में पहुँच चुके थे और इतने ही सत्याग्रही गिरफ्तारी के लिए शिविर में उपस्थित थे। 17 अगस्त 1923 को पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस के साथ झंडा लिए हुए सत्याग्रही तथा वल्लभ भाई पटेल और अन्य नेता सिविल लाइंस में घूमे। अंग्रेज सरकार ने यह स्वीकार कर लिया कि कांग्रेस को अपना राष्ट्रीय झंडा हर जगह ले जाने का अधिकार है। इस तरह झंडा सत्याग्रह, जिसका श्री गणेश पंडित सुंदरलाल ने किया। सफलता के साथ पूरा हुआ।

जबलपुर की जनसभा में झंडा सत्याग्रह के उन्नायक पंडित सुंदरलाल की स्फूर्तिदायिनी भूमिका का अभिनंदन किया तब सुभद्रा जी ने स्वागत गीत रचा और पढ़ा था। स्वागत गीत में कहा गाया :

कर्म के योगी, शक्‍ति प्रयोगी

देश भविष्य सुधारिएगा।

हाँ, वीर-वेश के दीन देश के,

जीवन प्राण पछारिएगा

झंडा सत्याग्रह के उन्नायक कर्मवीर पंडित सुंदरलाल, पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, हिंदी कवयित्री सुभद्रा जी का सपना सत्ता सुख का नहीं था वरन उसकी बुनियाद में राष्ट्र प्रेम की वेगवती भावना थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राष्ट्रीय एकता के लिए महती भूमिका अदा की तो बाबू राजेंद्र प्रसाद ने महात्मा गांधी के पद-चिह्नों पर चल कर ईमानदारी, सादगी और जनसेवा का कीर्तिमान कायम किया।


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