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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 17 क्रम या यथासंख्‍य अलंकार पीछे     आगे

लक्षण (सार) :- उद्देश्‍य कई एके जगही पर जहवाँ राखल जाला।
आ ओही क्रम से सगरे के जहाँ विधेय कहाला।
कवि लोगन के निज विवेक से ई क्रमालंकार हवे।
एकर भेद दुइ गो औरी होला ऊ बेकार हवे॥
उदाहरण (दोहा) :-
उठें त जीभि चलावहीं नेता बकरी साँप।
वोट बोक बिल पाइ के होइ जात चुप चाप॥
नकल जरा जलकल करत तीनूँ के बेकार।
रहत उपेक्षित होइ के सनद सरीर इनार॥
ट ण म श के हवे बार बार धिक्‍कार।
त न प स के पाके निकट देत न निज आकार॥
 
लावनी :- गोड़ बेवाई कान दाद जब पाइ जात बरसात हवे।
सरत मरत टभकत धीरे से आ कसि के खजुवात हवे॥
 
सरसी (16 + 11 मात्राएँ) :-
कातिक मास अमावस गोधन देव लगन बरियात।
आवत जात कुटात उठत आ चलत सजावल जात॥
 
दल बदली आ छात्र यूनियन औरी अधिक दहेज।
शासन शिक्षा आ बियाह में बनि आवत चंगेज॥
 


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