लक्षण :- जहवाँ साँच हटाइ के झूठे बात कहात।
अलंकार अपह्नुति तब उहवाँ मानल जात ॥
(चन्द्रालोकानुसार)
झूठ साँच बनि जात या साँच झूठ बनि जात।
छब प्रकार के अपह्नुति तहाँ स्वयं सिरिजात ।
रहे पाँच में ' ना ' सदा , कैतव में ' मिस ' ब्याज॥
सार छंद :- उपमेय रूप में सही वस्तु या बात छिपावल जाला।
उपमान रूप में गलत वस्तु या कवनों बात धराला।
अपह्नुति नामक अलंकार तब ओके मानल जाला॥
साँच बात के जहाँ छिपा के बदला में कुछ झूठ कहाला।
अलंकार अपह्नुति नाम के एगो उहवाँ मानल जाला।
' ना ' निषेध वाचक से एकर पाँच भेद पहिचानल जाला।
मिस या ब्याज शब्द रहला से कैतव नामक भेद चिन्हाला।
छव गो भेद कविन का द्वारा यद्यपि मानल जाला।
किन्तु भ्रान्ति में झूठ न कहि के साँचे बात कहाला।
एसे एगो अलंकार ई अलग स्वतंत्र बुझाला।
उदाहरण (लावनी छंद) :-
जन्म भूमि ना हवे राम के जलिया वाला बाग हवे।
ई ना हवे भाजपा बन में पसरे वाली आग हवे॥
जेसे सजी जन्तु बन के आतंकित हो घबड़ाइल बा।
आग कुचलि देबे के इच्छा सबका मने समाइल बा॥
अत: एकता का बंधन में अइसन सभे बन्हाइल बा।
कि हाथी और सिंह तक आपन बैर पुरान भुलाइल बा ॥
ई ना छात्रन के गोल हवे ईतऽ बिरनी के छत्ता हऽ।
ई ना चिरजीवी बूढ़ हवे सूखल केरा के पत्ता हऽ॥
जे अन्य पेड़ का पत्ता असा धरती पर ना गिरि जात हवे।
जन्म भूमिसे बिना प्रयोजन चिपकलरहत हठात हवे॥
दायें बायें उधियात रहत पा के बयारि के चाल हवे।
कार न एकर बा अब ई गर के अँवजाल बवाल हवे॥
ऊँच जाति के जीवन ना ई मृत हाथी के हउदा हऽ।
लरिका कुँवार नोकरी पावे त लरिका ना ऊ सउदा हऽ॥
गँहकी सुर ताजा माल हवे आ चढ़ल अकासे भाव हवे।
बड़की जतियन में अइसन सउदा के अत्यन्त अभाव हवे॥
कुण्डलिया :- हवे बजार बजार ना कोर्ट हवे बाजार।
छानि दोकानि रहें जहाँ सब वकील मुखतार।
सब वकील मुखतार दाम जब पूरा पावें।
अति उत्तम निर्दोष कोर्ट से न्याय दियावें।
निर्धन धन के देखि जहां केहुतनिक द्रवे ना।
अत: कोर्ट बाजार हाट बाजार हवे ना॥
समधीपन ई ना हवे इहे हवे उन्माद।
एहि में ना आपन दशा रहि जाला कुछ याद।
रहि जाला कुछ याद बमकि के समधी बोल।
खोजे खातिर रारि सुतन डोले मन डोले।
बात बात में चिढ़े क्रोध के हो उद्दीपन।
दवा करे ना काम रोग अइसन समधीपन॥
शुद्ध अपह्नुति अलंकार
लक्षण (दोहा) :- जहाँ हटा उपमेय के धइल जात उपमान।
शुद्ध अपह्नुति के हवे इहे सही पहिचान॥
या
जहवाँ साँच छिपाइ के , झूठे बात कहात।
अलंकार शुद्धापह्नुति उहवाँ मानल जात॥
उदाहरण :- बात समुझि लऽठीक से मानऽ बात हमार।
ई नाहीं समधी हवे इ हऽ थानेदार॥
फूलन डाकू ना हवे ई भविष्य प्रतिमान।
ई सुराज दी अइसने सूर बीर संतान॥
दोहा :- सावधान हो के करऽ , सब बरात के कार।
ई बेटहा समधी न बा , ई बा थानेदार॥
नहर हवे ना ई हवे , महा विपति के खान।
साँप काल ना ई हवे , मानव मिल महान॥
* * *
ई चुनाव ना हवे हवे ई लोग फँसावे वाला फन्दा।
दिव्य ज्योति सत्संगी के ना ई हऽ घर फोरे के धन्धा॥
ई सराध ना हवे मृतक के दिन बदि के ई हवे डकैती।
होमोपैथी दवा न ई हऽएक किसिम के नया ओझैती॥
नील गाइ जंगली जंतु ना ऊ सरकारी गाइ कहायी।
दूध उहे दी बैल उहे दी आ बैतरनी उहे हेलायी॥
भ्रान्ति अपह्नुति अलंकार
लक्षण (दोहा) :- साँचबात बतलाइ के संका देत मिटाय।
अलंकार के भेद ऊ भ्रांत अपह्नुति कहाय॥
वीर :- साँच बात बतला केहू के भ्रम यदि दूर भगवाल जात।
भ्रान्त अपह्नुति नाम के उहवाँ अलंकार तब हवे सुहात॥
उदाहरण (सवैया) :-
विपक्ष के तूरे में दक्ष विशेष प्रसिद्ध हँईं चिड़ीमार न बानीं।
खुलि के अब दान भी दीले कबें पहिले के परंतु उदार न बानीं।
अपना बदे जोहीले ओट सदा तिरिया हम किंतु उधार न बानीं।
हम माँगीले मोहर दान सदा पर मुस्लिम कन्या कुँवार न बानीं॥
हम जेल रिटर्न हईं पर चोर ना नेता हईं सचहूँ पतियाईं।
अब सेवक राउर शासक ना जनतंत्र बा देश में भूलि न जाईं।
मथवा पर हैट बा हाकिम ना हरबोलिया बानीं न हाथ उठाईं।
हवे मोछि मुड़ाइल झोंटा बड़ा कवि मानीं न नाच के साईं थम्हाईं॥
उठि जाईले तऽ बोलते रहीले बकरी हमरा के न किंतु बखानीं।
उठि के चलीं त पगुवे पगु पै गिरते चलीले शिशु किंतु न मानीं।
हम माँगीले मोहर दान त मुसलिम कन्या कुँवारि कदापि न जानीं।
बहुरूपिया ना हईं नेता हँई कुरुसी हथियावे के फेर में बानी॥
कबहुँ दुइ महीना बदे सबसे बढि के बनि जाईले दानी।
नित बाँटीले सैकिल कम्मल कोट आ नोट कहीं नगदी या जुबानी।
चाय के हण्डा पुड़ी के कराही जरे दिनरात करे अगुवानी।
अभिलाष न स्वर्ग के बा तनिको मन चाहत बा पहुँची रजधानी॥
* * * *
इन्द्र के वाहन हउअऽ परंतु न देह पै धूल न धैल करेलऽ
बाजि भी तूँ उनही के परंतु न मातलि का वश भेल करेलऽ
बनमाली न हो बन माली होके बन माला सदा गहदैल करेलऽ।
चढि़ बात का यान में बात का बात में बात से बात तूँ कैल करेलऽ॥
हम जाईले दूर रिझाईले आन के आपन नीक सुनाइ के बानी।
रयिा भर जागत बीते कबे दिनवों में न नींद मिले मनमानी।
हम मोंछि मुड़ाईले माथ बढ़ाईले कि लोगवा देखते पहिचानी।
हमहीं नूँ हुईं कवि , नाच के साई थम्हा के हमार हतीं जनि पानी॥
हम के जनि चोर बुझीं यदि जेल के बानी कई बेर के लवटानी।
हम चानिये काटीले आठो घरी तब जाति हमार सोनार न मानी।
लोगवे हम के कुरुमी पै उठा के धरे आ उतारे इहे जिन्दगी।
हमहीं एह देश के नेता हईं हमके लकवा के मरीज न मानी॥
हम बाजी लगाईले ढ़ाई सौ रूपया के हम ना हईं किंतु जुवारी।
हमके लोगवा गरियावेला लेकिन ना केहुवे के हईं अपकारी।
केहु ढेला चलाइके मारेला तऽहमके जनि कुक्कुर बूझीं गयारी।
हम घूमीले माँगते मंगन ना कुरुसी हथियावे के इ ह तेयारी॥
* * * *
मन लोभ तरु ताड़ा बदे संतोषबा कठफोड़नी।
पुस्तक जगत दुख जाल के हरिनाम दीमक के अनी॥
चौपई :-
एक जन्तु हिंसक बा आइल। अइसन कबे न रहे सुनाइल॥
लरिकन के ई धइ-धइ खाता। आजु इहाँ कल उहाँ सुनाता॥
जे के बा असुरक्षित पावत। ओही के बा ग्रास बनावत॥
बूढ़ लोग का पास न जाता। पर सब बुढ़वा लोग डेराता॥
बा आतंक मचवले भारी। जंतु कहाता ई सरकारी॥
ए पशु के हुँड़ार मति जानी। एके बस आरक्षण जानीं॥
कैतव अपह्नुति अलंकार
लक्षण (दोहा) :- ब्याज और मिस शब्द के साँच छिपावल जात।
कैतव अपह्नुति में किछू झूठे बात कहात॥
चौपई :- जहाँ ब्याज मिस के पर्यांय। के लेके अनिवार्य सहाय।
साँच छिपा के झूठ कहाय। उहाँ कैतवापह्नुति सुहाय॥
उदाहरण (दोहा) :- ई सरकार चुनाव मिस बैर फूट के बीज।
बोके वातावरण में पैदा करति गलीज॥
सुरसति पूजा ब्याज से करत रहजनी छात्र।
राह रोकि के दाम लें पढ़त लण्ठई मात्र॥
रचले विधि जवना धरी फूलन मिस एक नारि
तब से उनका सुयश में लगल चाँद बा चारि॥
सवैया :- उज्जर उज्जर उत्तर पुस्तिका गंग का धार समान लखात बा।
छात्र तथा अभिभावक के मन साँवर आ के उहाँ लहरात बा।
शासन आ अनुशासन नाम सरस्वती के जहाँ लोप देखात बा।
केंद्र परीक्षा के ब्याज बना जहाँ मेला प्रयाग लगावत जात बा॥
पण्डा पुलीस प्रबंधक का मिस मेला निरीक्षण हेतु भेजात बा।
पाड़ के पूजा पदार्थ इहाँ ऊ सब होके निशंक कमात बा।
धावल लोग इजाम का ब्याज से भारी हजूम बना बिटुरात बा।
सुद्धि का ब्याज से माथ इहाँ सरकार के मोंछिसमेत मुड़ात बा॥
कवित्त :-
धीरे धीरे संख्या कम होता किंतु खाली-
स्थान भरे बदे पुन: जनमत ना देखात बा।
शेष बचि जात ऊ विशेष कमजोर होत-
खदरे के चिन्ह से ऊ कइसों चिन्हात बा।
दूर भाज पावे ना कठोर मन भावे ना-
अत: अब ओकरा मुलायमें सुहात बा।
चर्चा ना चलत बाटे यूपी कांग्रेस के इहाँ -
दाँतन के बात सिर्फ अपना कहात बा॥
छेका अपह्नुति अलंकार
लक्षण (वीर) :- कवनो छिपल भेद यदि अपना हीत मीत से हवे कहात।
पर केहु तीसर व्यक्ति सुने तब ओसे बात छिपावल जात।
कथ्य छिपा के झूठ सुना के ओके यदि भुलियावल जाता।
छेकापह्नुति नाम के उहवाँ अलंकार तब हवे कहात॥
या
संका नासे आन के झूठ बात बतलाई।
छेकापह्नुति तब उहाँ आसन लेत जमाइ॥
उदाहरण (चौपई) :-
भोजन हरदम बढि़या चाहीं। कार करे के बिलकुल नाहीं॥
घास सीति बरखा न सहाय। तनिको श्रम से तन थकि जाय॥
ई ना टीबी के बीमारी। ई पहिले के हऽ सुकवारी॥
रुचे न केहु का ओकर आइल। देखि न जाला ओकर खाइल॥
तवनो पर हट पूर्वक आवे। घर में डेरा आइ गिरावे॥
तनिक हया या लाज न लागे। छूँछ खात मन कबे न भागे॥
ई ना मुस के हवे कहानी। पेटू पाहून इनके मानीं॥
चौपई :- मुवलि चाम जब खिंचलसि साँस। लोग सुनल जे निगिचा पास॥
ले के हाथ विविध हथियार। टांगी हँसुवा फार कुदार॥
घर से ले के पहुँचल आइ। चलल न एको किंतु उपाइ॥
सब केहु होकर के लाचार। उहवाँ डारि दिहल हथियार厝 ॥
उहाँ न हिंसक जन्तु महान। करत रहे कवनो नुकसान॥
उज्जर पत्थर के दीवार। तीन ओर जहवाँ बरियार॥
उहाँ जनाना एक चटोर। हुकुम चलावे चारू ओर॥
बढि़याँ बढि़याँ बस्तु मँगाय। सजी अकेल अपनहीं खाय॥
ओकर अतिशय कोमल गात। लाल रंग के सदा दिखात॥
दर पर बइठल करे अराम। केवल करे दूइ गो काम ॥
एका हुकुम चलावे खाय। दोसर काम न कबे सुहाय॥
ना कवनों रानी के बात। बाटे इहाँ बतावल जात॥
जेकर इहाँ कहाइल काम। ओकर रसना देवी नाम ॥
सवैया :- अपना बल बुद्धि के आश्रम ले बढि़ गैलि बा आगे एगो मरदानी।
बड़े बड़े बीर के शूर के धूर चटा के करे अपने परधानी।
अडि़ जात तबात सुने नहीं आन के हो के निसंक करे मनमानी।
गुन इन्दिराजी के कहात नबा इहाँ फूलन देबी के ई हऽ कहानी॥
घर लागे उदास सदा ओकरा बिनु जैसे न हो घर में केहु प्रानी।
बतियावे के जाने कला बहला मन बोले सदा मिसिरी अस बानी।
अडि़ जात कबे कुछ बात लेके अटके पर बोले लगे मनमानी।
करनी घरनी के कहात न बा ई हवे अपना रेडियो के कहानी॥
मरदाना बड़े बड़े का बिचवा में जनानाके ऊपर बात देखात बा।
भुलियावे में द्वापरी कबूरी फेल बा बुद्धि में लेता के कूबरी मात बा।
देखला पर टीपन राज का योग का साथ में जेल के भोग बुझात बा।
समुझीं जनि इन्दिरा जी के इहाँ इ तऽ फूलन देवी के बात कहात बा॥
वीर :- होखे बदे मियाँ से मिट्ठू दिहले सजी उपाय लगाय।
धर्म और सम्मान दुओ निज दिहलेपर हित हेतु गँवाय॥
बदनामी के भारी बोझा धइले अपना माथ चढ़ाइ ।
देखि चाँदनी चार दिनन की दिहले निज विवेक भुलवाइ巸॥
लूटेबदे चाबसी पूरा गइले एतना अधिक लुभाइ।
कि स्वजाति के बिना जियाने दिहले कतल आम करवाइ।
मुदई चले नाव पर चढि़ के और गवाह पवडि़ के जाय।
इहो कहाउति निज करनी से देत पूर्ण चरितार्थ बनाय॥
का ई बी. पी. के चर्चा सब बाटे इहाँ चलावत जात?
ना ना ई सब मान सिंह का बोर में बा बात कहात॥
पर्यस्त अपह्नुति अलंकार
लक्षण (दोहा) :- धर्म एक के छीनि के , दोसरा में रोपात।
अपह्नुति पर्यस्त तब उहवाँ मानल जात॥
उदाहरण (कुण्डलिया) :-
गुरू ना गुरू निरबल बदे , लाठी गुरू बनि जात।
माँगति ना गुर दक्षिणा , साथ रहति दिन-रात।
साथ रहति दिन रात सुपथपर सदा चलावे।
परे न पावे लात कुपथ अगतहीं बतावे।
निरबल के बल इहे करति निशिवासर करुना।
जग में अइसन मिलत कहीं केहु दोसर गुरु ना॥
सनकीपन उनमाद ना , समधीपन उनमाद।
एहि में कुछ आपन दशा , रहि जाला ना याद।
रहि जाला ना याद बमकि के समधी बोलें।
और बात ना करें कलह खातिर मुंह खोलें।
बात बात पर होत अज्ञता के उद्दीपन।
दवा करे ना काम रोग अइसन समधीपन॥
हवे बजार बजार ना , कोर्ट हवे बाजार।
जहाँ न्याय सौदा बिके , गाँहक जुटें हजार।
गाँहक जुटें हजार दाम जे अधिक चुकावें।
उहे न्याय उहवाँ अपना मन माफिक पावें।
दीन-दुखी के देखि जहाँ केहु तनिक द्रवे ना।
कोर्ट हवे बाजार हाट बाजार हवे ना ॥
दोहा :- मच्छर मच्छर ना हवे ई निशिचर के जाति।
अन्य जीव के रुधिर ई पियर रहत दिन-रात॥
हवे बराति बराति ना ई हऽ दस्यु जमाति।
अन धन पशु बरतन बसन सजी लूटि ले जाति॥
जज के कलम न कलम बा ऊ बाटे तरुवारि।
जे अपराधिन के गला छन में देति उतारि॥
ककना ककना ना हवे ककना बा अब बाच।
नर नारिन के हाथ में करि ले केहू जाँच॥
हार हारि के हटि गइल भइल रेडियो हार।
ई गर में बन्हला बिना होत न सही सिंगार॥
+ * * * *
बीजगणित ना गणित हवे ई गहिरा दृष्टि कूट हवे।
ई ना बेटी के बियाह हऽ बेटहा द्वारा लूट हवे॥
ई ना विडियो के कुरुसी हऽ सिंहासन हऽ केहु राजा के।
ई ना कवि सम्मेलन हऽ ई नाच हवे बिनु बाजा के।
ई ना हवे छात्र युनियन अब ईहो एगो क्लास हवे।
नेता बने बनावे के नित होत जहाँ अभ्यास हवे॥
ई ना धामिन साँप जे मूसन के नित करत अहार हवे।
ई बिनु वेतन पवले खेतन के चौकस रखवार हवे॥
ना तऽ गणेश वाहन खेतन के फसिल उहें सब सपरायी।
एको पाव अनाज कृषक का घर में ना आवे पायी॥
हेतुअपह्नुति अलंकार
लक्षण (दोहा) :- जहाँ शुद्ध अपह्नुति में कारण हवे कहात।
हेतु अपह्नुति नाम तब ओके मानल जात॥
उदाहरण :- ई ना बेटी के बियाह हऽ डाकू द्वारा लूट हवे।
केवल प्राण शेष रहि जाला एतने एमें छूट हवे॥
ना तऽ वर्तन बस्त्र विभूषण वाहन आदि लुटात हवे।
आ चले चलावे का बेरा खूँटा उजार हो जात हवे॥
रुपया पइसा के कवन बात ऊ लुटि जात अथाह हवे।
ऊ लूटे के नेग नाम के बनल कई गो राह हवे॥
तेपर ई डाकू पूज्य बने के इच्छा मन में राखेला।
आ तनिको कमी देखि आदर में बहुते जल्दी माखेला॥
बीजगणित ना बीज गणित हऽ ई लरिकन के खेल हवे।
जेमें अक्षर का साथ करावल जात अंक के मेल हवे॥
कहीं अक्षर का साथे दायें बायें अंक लिखात हवे।
और कहीं अक्षर का माथा पर चढि़ घात कहात हवे॥
कोष्ठ कई गो बना बना के साथे दुओ घेरात हवे।
आ कोष्ठ तूरि के पुन: दुओ अलगे फुटकावल जात हवे॥
बीच बीच में धन में ऋण आ ऋण में धन बदलात हवे।
एतना सब कर के अक्षर के मूल्य तय कइल जात हवे॥
किंतु दाम ऊ काम न आवत कबे न कहीं पुछात हवे।
काहें की ओ अक्षरके गाँहक ना कहीं देखात हवे॥
ई ना ह यज्ञोपवीत ई नाटक खेलल जात हवे।
चौबीस बरिस के पढ़गित दुइ घण्टा में सजी ओरात हवे॥
दस पाँच बात जे गुरू महोदय आँगन में बतलावेलें।
ओतने में ऊ आपन सगरे गुरू के कर्म खपावेलें॥
भिक्षा में अंन दियाला ना सब लोग लोटि बरिसावेला।
और लोटि से भरल पात्र गुरू का आगे चलि आवेला॥
ऊ भिक्षा सजी गुरू के धन हऽ इहे पुरान रिवाज हवे।
किंतु गुरू खातिर ऊ धन सपना के सम्पत्ति आज हवे॥
घर के छोटा सा आँगन गुरुकुल के काम चलावेला।
नारि बटु बनि जाला आ वेद मंत्र सब गावेला॥
बटु माँगे खातिर भीखि न आँगन से आगे बढि़ पावेला।
दाता लोग भीखि देबे खातिर आँगन में आवेला॥
आँगन में विद्या पढ़ल सजी आँगन में उहें भुला जाला।
या गुरू के दक्षिणा रूप में विद्या उहें दिया जाला॥
किंतु विवाहित होखे के योग्यता लरिकवा पा जाला।
आ बर के फूफा बियाह के बात चलावे आ जाला॥
दोहा :- ई नाहीं समधी हवे ई हऽ थानेदार।
रुपया लेता रोब से सुनत न बात उधार॥
फूलन डाकू ना हवे ना डाकू सरदा।
जस राजा तइसन प्रजा कथन करति साकार॥