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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 40 लेश अलंकार पीछे     आगे

लक्षण (दोहा) :-
अवगुन में गुन लखि परे गुन में दोष देखात।
लेश नाम के दुहुन में अलंकार बनि जात॥
 
वीर :- गुण में लौकत दोष जहाँ पर या कि दोष में गुण दरसात।
दुओ दशा में लेश नाम के अलंकार बा सदा सुहात॥
 
उदाहरण (वीर) :-
आरक्षण दे के लरिकन के पथ पर से बहकावल जात।
या दुलार के मारे उनके मन बाटे सहकावल जात॥
अब उनका से पार न लागी जौन पढ़ाई बा श्रम साध्यt।
हालत जौन जहालत के बा बनल रही ऊ सदा अबाध्या॥
 
चौपई :- आरक्षण में गुण बहुतेक। पइहें आरक्षित प्रत्ये<क॥
अब ना सही देहि के चाम। कानो माटी धूरा घाम॥
हर कुदार अब छुई ना हाथ। केहु का आगे भुकी न माथ॥
परी कचहरी में जब काम। बड़को लोगवा करी सलाम॥
बाबूगिरी और आराम। केवल रही दूइ गो काम॥
महुवा चाउर वाला काम। गइल भइल अब हाथे दाम॥
नोकरी मिलला के बा देर। मिलबे करी अबेर-सबेर॥
 
दोहा :-
पाहुन जेकर बेहया सेकर इहे सुतार।
सून-सान ना रहि सकी ओकर कबे दुवार॥
 
दोष में गुण
राजा परीक्षित से मिलल कलियुग का जे वरदान बा।
सोना भी कलियुग का रहे के बनल एक स्था न बा।
विसुनाथ मंदिर के हवे सोना भइल यदि अपहरण।
तब हटि गइल कलियुग भइल मंदिर के बा शुद्धीकरण।
* * * *
गाइ ना बाछा नींद आवे आछा
ना खेत गोयड़ा ना खेत पाही।
त का करिहे ओकर तहसील के सिपाही॥
 
गुण में दोष
कुण्डेलिया :-
पक्काो घर में एक गो अवगुण इहे देखात।
आवत जब भूडोल तब देहीं पर भहरात।
देहीं पर भहरात करत परिवार सफाया।
जाये लायक अस्प ताल राखत ना काया।
अनचितले में जान जात सबके पलभर में।
जाड़ा भी कुछ अधिक परे पक्काभ का घर में॥
* * *
पाव दुओ ना भूमि छुवे के देव रहनि अपनौले बा।
अनायास हम के तब एगो देवता उहे बनौले बा॥
संक्षेप में हालि आँखि के इहाँ बतावत बानी अब।
एक आँखि कोरट भइले दुसरी कहाति बा कानी अब॥
लेकिन हमरा बहुत लाभ बा एही अँखिया कानी से।
दैत्य गुरू आ कवि के पदवी मिलत हवे आसानी से॥
कई दाँत बा टूटि गइल कुछ के हीलल अब जारी बा।
बिल्कु ल नारद मुनि बनि जाये के मानों होत तेयारी बा॥
पाकल बार माथ के उज्ज र झण्डाे मनु फहरावता।
विश्वबबन्धु्ता बैर भाव के मानो लीप जनावता॥
अब बात न केहु के बा सुनात तब कलयुग के भगवान हई ।
जब बात न केहु के बा सुनात तब दुख पर देत नध्याा न हईं।
 
दोहा :-
मधुमाछी के घर सदा मधु खातिर उजरात।
रेशम कीड़ा रेशमे खातिर मारल जात॥
मीठापन के कारणे कल में ऊँखि पेरात।
कुटल जात बा धान आ गोहूँ पीसल जात॥
धन्य रोग बा कोढ़ के निरबल हित बरदान।
कोढ़ी के धकियाइ के बैठत ना बलवान॥
फरल पेड़ पर होत नित ढेपा के बरसात।
बिना फरल पर ध्यानन ना बाटे केहु के जात॥
टीचर खातिर भीरुता बा कल्यानण अधार।
ना त परीक्षा हाल में घातक मिली प्रहार॥
सुर्ती में बा एक गुण जहर निकोटिन देत।
जवन साँप का जहर के कुछ प्रभाव हरि लेत॥
टटऊ घर का निकट यदि धामिन करे निवास।
मूस कबे ना रहि सकी घर का निगिचा पास॥
फूलन देबी के भइल सुन्दिरताई काल।
जहाँ-जहाँ गइली तहाँ होखत गइल बवाल॥
X X X
राजसभा में लाज द्रोपदी के जा कबे बचवले।
आ हाथी के प्राण बचावे खातिर पैदल धवले॥
कलियुग में ना धर्म बचावे खातिर बाड़े आवत।
केतने रावण संत लोग के बाड़े सदा सतावत॥
मच्छ र खटमल आ के यदि लोहू हमार पी जाई।
तब खबर खबर खजुवावत में बहुत आनंद बुझाई॥
मच्छ र के खून पीये खातिर जब पशु के जाति रचाइल।
तब खटमल के दल ब्रह्मा का पास सजी बिटुराइल॥
आ कहल कि एगो प्राणी कवनों हमनी बदे बनायीं।
कि हमनी का अपना घर में बैठल भोजन पायीं॥
तब मानुख के जारि रहे ब्रह्मा द्वारा सिरिजाइल।
आ मानुख का बिस्त र में खटमल के जगह दियाइल॥
लोग कहेला भगवत भजन करे खातिर ई देह हवे।
लेकिन एह कथन पर हमरा रहत सदा संदेह हवे॥
खटमल आ मच्छनर का चाहीं ताजा लोहू पीये के।
एही खातिर मानुष आइल बा धरतीपर जीए के॥
 
सार :- परशुराम के देखते राजा सबके धीरज छूटल।
मन में कहल कि अच्छाु भइल कि धनुष न हमसे टूटल॥
अलंकार मय कवित देखि के अब कुछ लोग घिनाता।
अलंकार लिखवैया भी अब पिछड़ल मानल जाता॥
तेल बदे तिल तीसी सरसो रेड़ी आदि पेराता।
तेले बदे समुद्री मछली भी कुछ मारल जाता॥
चमड़ा खातिर गोह गोहटी जन्तुछ असंख्यह बधाता।
कहे मान के दोष न अवगुन गुण में पावल जाता॥
 


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