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कविता

संग-संग

मोहन सगोरिया


किसी दिन मैं सोकर न उठ पाऊँ
तब मेरा कमरा साफ सुथरा रखना

मेरी मेज और सेल्फ पर सजी किताबें
कागज कलम, दवात, कंप्यूटर
जहाँ बैठ कर लिखी ढेरों कविताएँ
और पढ़ते-पढ़ते कोई बोझिल उपन्यास आ गई झपकी

बैठकर सहेजना तुम यादें
टेबिल-लैंप की रोशनी में देखना
मेरी सूरत और पढ़ना उसे
उलट-पुलट लेना आलमारी

दोहरा लेना कि कौन ले गया कौन-सी पुस्तक
वह लौटाएगा कब? या कि न भी लौटाए
मेज पर बैठे-बैठे घुमा देना ग्लोब
यकीनन तारीख बदल जाएगी, तुम देखोगे
एक साथ भारत और आस्ट्रेलिया
यहाँ संग-संग दिखेगा जागना-सोना।

 


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हिंदी समय में मोहन सगोरिया की रचनाएँ