hindisamay head


अ+ अ-

कविता

हो सकता है क्या ?

शैलजा पाठक


 
घर का आँगन पाट के
सुदर्शन भैया
अपने कमरे को बड़ा करवा रहे हैं

दीदी की शादी हल्दी संगीत
से यही आँगन गुलजार था
अपटन हाथ में छुपाए
जीजा को लगाने पर कितनी धमाचौकड़ी
की थी हमने

आँगन के अतीत में सुतरी नेवार वाली
खटिया है
अम्मा हैं कहानियाँ है गदीया के नीचे छुपा के रखा
उपन्यास 'गुनाहों का देवता' है
आम की गुठली के लिए

लड़ने वाले भाई बहन हैं
टूटा हुआ दिल है
भीगती हुई तकिया है
थके हुए पिता की चौकी है
इस आँगन पर झूमर सा
लटकता आसमान है

खिचड़ी की रसम निभाई में
पूज्य लोगों के सामने इसी आँगन में
पिताजी यथाशक्ति खर्च कर भी
निरीह से हाथ जोड़े खाना शुरू करने की
विनती किए थे

लड़कियाँ पराई हैं न
उनके पास बस यादें हैं
हम यादें बचाएँ तुम आँगन
हो सकता है क्या?


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में शैलजा पाठक की रचनाएँ