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कविता

एक प्यार का नगमा

शैलजा पाठक


 
वो फ्राक पर दुपट्टा ओढ़ती
लड़का साथ चलता
सारा दिन गली की भूलभुलैया में वो
गुम हो जाते ...फिर किसी मोड़ पर मिलते
कभी वो दुपट्टे के ओर छोर को पकड़े आगे पीछे भागते
कभी उसकी छत बना मुस्कराते और खड़े रहते घंटों
बचपन की रंगीन खिलखिलाहटों के दिन थे
बीत गए

अब दुपट्टा लड़की की छाती पर कस गया
लड़के के सर पर आसमान सी नंगी जिंदगी का बोझ
अब वो गली गली काम करते भागते
किसी भी मोड़ पर मिल कर भी नहीं मिलते

अचानक एक शोक गीत सी खबर
पूरे मुहल्ले में पसर गई
रात कुछ शराबियों ने लड़की को गली में धर दबोचा
मनमानी की और मार डाला

उघड़ी छाती ...बिंधा शरीर ...खुली आँखों वाली लड़की
मृत बताई गई
उसके मुठ्ठी में दुपट्टे का एक छोर
कसा हुआ था... और दूसरा छोर...

गली के अगले मोड़ पर यादों की खिलखिलाहट का दूसरा छोर थामे
लड़का अपने बड़े होने का मातम मना रहा था
दुपट्टे की छत राख बनी उड़ रही थी अब...
 


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