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कविता

अभ्यास

शैलजा पाठक


खाना खतम होने के
बाद भी
वो घुमाता है बार बार
हाथ थाली में
शायद मन बहल
जाता है उसका
या कि भर जाता है
खाली पेट
ऐसे अभ्यास से

तृप्त होने के लिए
वो कितने झूठे निवाले
खाता है
मुस्कराता और उठ जाता
आज खूब खाया खाना
अच्छा बना था

पत्नी ये झूठ सुनकर
खुश होने का
अभिनय करती है

वो भी तो इसी अभ्यास से
रोज अपना पेट भरती है...
 


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