ससुराल से पहली बार
आई कजरी गुमसुम सी है
कम हँसती है
अकेले कोने में बैठ कर
काढ़ती है तकिया के खोल
पर हरा सुग्गा
सहमी सी रहती है
आने जाने वालों से नही मिलती
देर तक बेलती रहती है रोटी
इतनी की फट जाए
माई बाप अगली विदाई की
तैयारी में लगे हैं
छोटी बहन जीजा को लेकर
जरा छेड़ती है
आस-पड़ोस वालों में किसी 'नई खबर'
की सुगबुगाहट
ससुराल से वापस आई लड़कियाँ
बस लाती है तथाकथित नई खबरें
ये मान लेते हैं सब
कोई जानना नही चाहता
...कजरी छुपा लेती है
वो दाग जो दुखता है हर घड़ी
बाप जुटा रहा है विदाई का सामान
कजरी के मेजपोश पर हरा सुग्गा|
एक काले पिंजरे में बंद है
सुई चुभती है
कजरी की उँगलियों से निकलने वाला
रंग सुग्गा के चोंच जितना गहरा है