मिसिर पंडित
	मुहल्ले के पुजारी थे
	हनुमान मंदिर की देख रेख करते
	बाढ़ में बह गए अपने गाँव
	बीमारी से मर गई अपनी पत्नी
	की शिकायत कभी भगवान से
	ना करते
	मंगलवार को होने वाले कीर्तन में
	मिसिर पंडित ढोलक पर
	मगन हो गाते
	
	बजरंगी हमार सुधि लेना विनय तोसे बार बार है...
	बार बार है जी हजार बार है ...इस उँचाई पर
	जहाँ पूरी कीर्तन मंडली की साँसें उखड़ जातीं
	पंडित जी की उंगलियाँ और सुर आसमान छू लेता
	
	गले की नसें तन जाती ...माथे से पसीना
	आँख से झर झर आँसू
	उन आँसुओं में बह जाता बैल के गले का कंठा
	बाँस की खटिया ...बखार का अनाज
	पंडिताइन की लाल चद्दर अबोध बछिया
	पकड़ी पीपल सब डूबता सब बहता
	
	अंत में सबको विदा करते
	पंडित मूँद लेते अपने खाली कमरे की किवाड़
	अब बाढ़ का पानी उतर गया है खुल गई पलकें
	सूखे हैं गाल ...बँट गया है प्रसाद
	मंदिर की सीढ़ियों पर बचे हैं मिसिर पंडित...