बिछड़ने से
	सिर्फ तुम दूर नहीं हो जाते
	कुछ रास्ते अपने आप को
	भूल जाते हैं
	तालाब का गुलाबी कमल
	मुझसे आँखें फेर लेता है
	हवा में बह रही
	तुम्हारी आवाज
	टकरा टकरा जाती है
	मुझसे
	
	कंबख्त बेखुदी तो देखो
	ये जानते हुए भी कि नहीं हो तुम
	बढ़ाती हूँ अपना हाथ तुम्हारी तरफ
	आज कहाँ चोट लगा लिया ?
	ये भी सुनती हूँ
	
	मंदिर के मोड़ पर
	तुम मुझे फूल लिए दिखते हो
	सावन में एक हरा दुपट्टा तुमने
	मुझे ओढ़ाया था
	
	मेरे रास्ते अब मंदिर नही पड़ता
	वो रास्ता भी छिन गया है अब
	समंदर की कोई लहर नही छू पाती मुझे
	पूरा चाँद भी अधूरा दिखता है मुझे
	होली का अबीर फीका कर गए हो
	
	तुम्हारे बिछड़ने से मैं दूर रही हूँ
	इन खूबसूरत लम्हों से
	मैं बिछड़ गई अपने आप से
	
	मेरे अँगूठे को जोर से दबाने की टीस
	देखो हुई अभी अभी
	
	बिछड़ना बस एक भ्रम होता है क्या ?