कपड़े की गुड़िया
झूलते से हाथ पैर
लाल पीली साड़ी
बड़ी आँख में
ये मोटा काजल
कान में अटका के
पहनाई पीतल की बाली
मोटा सा सिंदूर
ताखा पर घर
अपने गुड्डे के साथ
सावन में आई
झूले पर
बारहमासा या कि
झूला लगा कदम की डारी
झूले कृशन मुरारी ना...
दोनों परिवार बगीचा में भोज
पूरी तरकारी बूँदी
ढोलक पर ताल
हम्मे लाली रंग चुनरी दिला दे बालमा
खो गई संतो नाम की कपड़े की गुड़िया
खो गया वो मासूम सा संसार भी
हमने अपनी गुड़िया ब्याही
अम्मा ने अपनी गुड़िया
सब अपना राज पाट
सँभालने लगीं
संतो ! अतीत की आँधी में
कितनी बार उड़ आती है
तुम्हारी चुनरी आसमान पर पसर जाता
काजल ...तुम्हारी मोटी आँखों के आँसू
हमारे थाली में गिरते हैं
खाना नमकीन हो जाता है
आज कलेजे से लगाने का मन है
तुम ठीक तो हो ना ?