तुम्हारे प्यार में
जीना था जी भर
मुझे लगा पंख दोगे
दिया तुमने
पर आसमान छीन लिया
मुझे लगा स्वर दोगे
दिया ...पर दीवारें ऊँची कर दी
रंग दोगे ...पर कुछ रंग निर्धारित कर दिए
बाहर की दुनिया में मौसम बदलते थे
पर तुमने मुझे एक ही मौसम में रोके रखा
तुम्हारे तिजोरी के अपार खजाने की चाभी
मेरे निढाल होते कमर पर करती है
जरा जरा सी आवाज
मेरी निस्तेज पड़ी देह पर
तुम सजाते हो जेवर कपड़े
मेरी दुनिया में सिर्फ तुम रहे
और मेरे अंदर दफन हो गई
एक और दुनिया जिसे मैं
जीना चाहती थी
तुमने अपने सारे वादे
निभा दिए ..अपनी शर्तो पर...