भीगे गत्ते से
बुझे चूल्हे
को हाँकती
टकटकी लगाए ताकती
धुएँ में आग की आस
जनम जनम से बैठी रही इया
पीढ़े के ऊपर
उभरी कीलों से भी बच के निकल
जाती है
धीमी सुलगती लकड़ियों में
आग का होना पहचानती है
हमारी गरम रोटियों में
घी सी चुपड़ जाने वाली इया
घर की चारदीवारी में चार धाम का पुण्य कमाती
भीगे गत्ते को सुखाती
हमेशा बचाती रहीं
हवा पानी आग माटी
और अपने खूँटे में बँधा आकाश...