अपनी बाँहों में समेट लेने को आतुर नींद मुझे बुलाती रही रातभर मैं नींद के लिए ढूँढ़ता रहा कोई सपना।
हिंदी समय में अरविंद कुमार खेड़े की रचनाएँ