धीरे-धीरे वक्त बीत गया है वक्त ने मेरी उजली देह पर बनाए हैं जख्मों के निशान वक्त ने मेरे जख्मों को ढक दिया है सफेद चादर से वक्त ने अपने गुनाहों पर डाला है पर्दा।
हिंदी समय में अरविंद कुमार खेड़े की रचनाएँ