किसी इतवार की तरह तुम्हारा बेसब्री से इंतजार रहता है तुम आती हो किसी तिथि की तरह बिखरी हुई जिंदगी को सलीके से करती हो ठीक शाम को चढ़ता हूँ किसी मंदिर की सीढ़ियाँ प्रसाद में पाता हूँ तुम्हारा संग।
हिंदी समय में राजकिशोर की रचनाएँ
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