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कविता

शहर

अरविंद कुमार खेड़े


शहर की तमाम
अच्छाई-बुराई को दरकिनार कर
मैंने कर लिया है
शहर को आत्मसात
एकाएक शहर ने मुझे
नकार दिया है
खफा होकर दे डाली है
मुझे चुनौती
जिसे मैंने भी
सहर्ष स्वीकार ली है
अंजाम की परवाह किए बिना
अब एक तरफ मैं हूँ
दूसरी तरफ शहर है
और हादसे का इंतजार है।


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