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कविता

पूर्ण विराम

प्रतिभा गोटीवाले


शब्दों के आगे पूर्ण विराम लगा देने से
शब्द थमते हैं संवाद नहीं
संवाद चलते और
घुटते रहते हैं निरंतर
पूर्ण विराम के भीतर
और हो जाते हैं समाधिस्थ अंततः
फिर किसी दिन
तुम चाहते हो
हटा कर पूर्ण विराम
शुरू करना सिलसिला बातों का
तब बढ़ते है निष्प्राण
केवल शब्द, संवाद नहीं
पूछते हो क्यों !
समाधियाँ बोलती हैं कहीं ?


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