जब पलटती है सपनों की सत्ता और पैर जमाता है साम्राज्य यथार्थ का तब एक एक कर आत्मसमर्पण करते जाते हैं सपने निकलकर मन के घने बीहड़ों से और तोड़कर लहराते हुए अपने ही पंख दिखलाते हैं संधि संकेत...।
हिंदी समय में प्रतिभा गोटीवाले की रचनाएँ