खुरचकर तर्कों की चट्टान पहुँचते तुम तक बहस के ऐसे तीखे नाखून थे नहीं मेरे मासूम सवालों के बस टकराकर वापस लौटते रहे और देखो कैद हूँ अब मैं अपने ही सवालों के घेरे में !
हिंदी समय में प्रतिभा गोटीवाले की रचनाएँ