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कविता

नींद के पाँव भारी हैं

प्रतिभा गोटीवाले


बेचैन आँखें
खोजती रही हैं
रातभर
नींद को
और नींद !
बीते दिनों के
आँगन में खड़ी
मस्त हो कर
खाती रही है
इमलियाँ
खट्टी मीठी यादों की
लगता है
सपना कोई नया
आने को है,
मुझे शक हैं
फिर आजकल
नींद के पाँव भारी हैं...


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