बातें जो कह नहीं पाती उन्हें उँगलियों के पोरों पर समेट लाती हूँ और छूकर तुम्हें तिरोहित कर देती हूँ तुममें तुम्हारी मुस्कुराहट उन्हें सुन लिए जाने का आश्वासन है।
हिंदी समय में प्रतिभा गोटीवाले की रचनाएँ