hindisamay head


अ+ अ-

कविता

दादी जी के लिए

नरेश अग्रवाल


तुम नहीं हो
फिर भी हमें लगता है
तुम यहीं कहीं हो

कभी घड़े के पानी की तरह
उतरती हो हमारे गले में
कभी अन्न का स्वाद बनकर
शांत करती हो हमारी भूख

दीये की लौ की तरह

जलती हो हमारी पूजा में
फूलों की सुगंध बनकर
बसती हो हमारी प्रार्थना में

एक आभास की तरह
जिंदा हो हमारी रग-रग में
हवा की तरह मौजूद हो
हमारे हर दुख-सुख में

तुम यहीं कहीं
बसी हुई हो हमारे दिल में
जैसे मौजूद थे हम कभी
तुम्हारी कोख में।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में नरेश अग्रवाल की रचनाएँ