एक बार नहीं अनेक बार वह घुसा है चोर की तरह तालाब के शांत पानी में और देखते-देखते चुराकर लाया है एक मछली बहुत सारी मछलियों के झुंड से फिर भी अनजान रहीं मछलियाँ चुप रहीं मछलियाँ थामा उसका हाथ हमेशा कोई अपना प्रिय सम
हिंदी समय में नरेश अग्रवाल की रचनाएँ