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कविता

सिक्के का मूल्य

शंकरानंद


आज जो सिक्का चमक रहा है
वह सिक्का
पता नहीं कल बाजार में चले भी या नहीं

यह भी जरुरी नहीं कि कल
लोग इसके लिए पसीना बहाएँ
अपना जीवन खर्च करें और
एक दिन इन्हीं सिक्कों की खातिर
खदान में मृत पाए जाएँ।


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