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कविता

घड़ी

शंकरानंद


सब कुछ इसके सामने होता है

इसका टिकटिकाना देर तक गूँजता है
यही इसकी पुकार है चुप्पी में
यही इसका विरोध

सब कुछ देखने वाली घड़ी
कभी गवाही नहीं देती।


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हिंदी समय में शंकरानंद की रचनाएँ