पानी का जन्म धूप के लिए हुआ या प्यास के लिए कुछ भी नहीं बचा जो नहीं मिला इसमें फिर भी कंठ को इसका इंतजार है स्वाद की स्मृति अब इतनी पुरानी हो गई कि कुछ पता नहीं चलता या फिर जीवन इतना गंदला हो गया है कि सब कुछ एक जैसा लगता है।
हिंदी समय में शंकरानंद की रचनाएँ