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कविता

अचल तलवार

प्रीतिधारा सामल

अनुवाद - शंकरलाल पुरोहित


संधि या आत्मसमर्पण
कुछ नहीं कर सकता
रुआँसा सैनिक
युद्ध क्षेत्र में खड़ा है
अकेला

जिस अस्त्र का मान लेकर
वह उतरा युद्धभूमि में
वह धूप में झुलसने के सिवा
अधिक कुछ न कर सका अब तक
उसकी झंकार सुनाई देती
नूपुर की किंकिन,
युद्ध का आह्वान कम

ऐसे अस्त्र का वह क्या करेगा
जो काट न सका कोई सर
बंद नहीं कर सका रक्तनदी का स्रोत
सुना न सका गीता का सारांश
दुर्बल आदमियों को,
हीनवीर्यों को मता न सका,
जो घट रहा, उसे देखने के सिवा
और कुछ कर सका क्या वह?

जो रात सो दिन
और दिन को रात कह पाते
आकाश की छाती फाड़ झरा सकते
वर्षा, अपनी इच्छानुसार
असहाय कर पाते अंधकार को -
और हथेली में रख पाते भाग्य
वे रह जाते इतिहास में
या किंवदंती में युग-युग के लिए
जब कि वह कुछ न कर सका
अस्त्र को फेंक न सका,
छुपा देता छाती के नीचे
खाली कंधे में और
युद्ध क्षेत्र में
रुआँसा खड़ा है
अकेला


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