बहुत हसीं है वो और हुस्न से आगाह भी है
उसे पता है कि वो चौधवीं का माह भी है
नज़र नज़र में मुसद्दद[1] है उसकी, उसको मगर
पता है उसकी तरफ़ ही सभी निगाह भी है
न देखें जो तो कहे जायें ज़ाहिदे बद-मग़्ज़[2]
जो देखिये तो वो आँखों का इश्तिबाह[3] भी है
हम आजिज़ों[4] को कोई उससे पूछकर बतलाय
कि मुल्के हुस्न में कोई पनाहगाह[5] भी है?
घिरा है चार तरफ़ ऐसे उसके हुस्न से ख़िज़्र[6]
कि पूछता है सभी से कि कोई राह भी है?
[6]
इस्लामी विश्वास के अनुसार ख़िज़्र वह पैग़म्बर हैं जो भूले भटकों को राह दिखाते हैं।